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थ्री ऑफ पेंटाकल्स

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अपराईट भविष्य कथन का महत्व



योग्यता, अनुमोदन, प्रयास, टीम वर्क, सहयोग, सीखना, कार्यान्वयन।

यह आदमी दो भुजाओं वाला भगवान विश्वकर्मा है। जो विश्व की रचना करनेवाले आर्किटेक्ट है। यह कार्ड आपकी योग्यता 'काबिलियत' को दर्शाता है।आपका ग्यान और समझ अन्य लोगों से काफी अलग है। आपको लोगों ने अब तक समझा ही नही है। आपको स्वयं परमात्मा का अनुमोदन 'समर्थन' प्राप्त है। आपके प्रयास अब आपको बेहतर रिजल्ट देंगे।

आपकी मेहनत का फल चखने को मिलेगा। एक अच्छा टीम वर्क आपको खडा करना है। सबका सहयोग लेना है। सबसे कुछ न कुछ सीखना है। हर एक कार्य का कार्यान्वयन इतना ठोस होगा की आपको उसके द्वारा बेहतरीन परिणाम मिलेंगे।

रिवर्स भविष्य कथन



व्यस्तता, महत्वाकांक्षाएं, वैमनस्यता, गलत संरेखण, अकेले काम करना

अनेक अनेक प्रोजेक्ट्स पर काम, या घरेलु कामकाज में व्यस्तता बढती जाएगी। जिससे शरीर का नुकसान भी हो सकता है। आपकी महत्वाकांक्षाएं बढती जाएगी। महत्वाकांक्षा बुरी नहीं है. किंतु कदापि राक्षसी महत्वाकांक्षा ना रखिए।उससे वैमनस्यता बढने का खतरा होता है। हो सकता है आप अपने रिश्तोंका, लोगों का, काम का गलत संरेखण करेंगे।तो सावधान रहना है नहीं तो आपको अकेले काम करना पड सकता है। टीम वर्क पर ज्यादा जोर देना है।

युरोपिय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु



लकड़ी की बेंच पर एक कारीगर खड़ा है।

तीन पेंटाकल्स ने अपना रंग और स्वतंत्र पहचान खो दी है। इस कार्ड में, पीले रंग की पृष्ठभूमि के साथ तीन पेंटाकल्स नहीं हैं।

वे दीवार में एम्बेडेड काले रंग की पृष्ठभूमि पर सफेद रंग में हैं।

चर्च जैसी इमारत के अंदर अंधेरा है, कारीगर पीले रंग का गोल हथौड़ा और छेनी पकड़े हुए, दो इंसानों से बात कर रहा है।

पीले रंग की पोशाक वाली महिला और सफेद रंग का एक आदमी कारीगर को कुछ दिखा रहा है।

प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु


एक मजबूत युवक मूर्ति पर काम कर रहा है। मूर्ति एक बच्चे को गोद में लिए मां की है। वह पहले ही पत्थर से दो मंदिर बना चुका है। उसने पहाड़ियों पर भी एक मंदिर का निर्माण पूरा कर लिया है।

दो मंदिरों का मुकुट दो पेंटाकल्स से बना है और एक पेंटाकल माता की मूर्ति के हाथ में है। बच्चा इसके साथ खेल रहा है।

यह युवा आदमी दो भुजाओं वाला विश्वकर्मा है। वह स्वर्ग और पृथ्वी पर भवनों, मूर्तियों के निर्माता है। अनेक भवनों के निर्माण का दबाव पाकर विश्वकर्मा को दो और भुजाएँ प्राप्त हुईं। तबसे उनकी चार भुजाओं वाली सदियों पुरानी सफेद बालों वाली छवि बहुत लोकप्रिय हुई। उनकी विशाल रचनाओं के कारण उन्हें सृष्टि के निर्माण देवता के रूप में पूजा जाता है।

(विश्वकर्मा भगवान की विस्तृत कहानी ।)

हम अपने प्राचीन ग्रंथो उपनिषद एवं पुराण आदि का अवलोकन करें तो पायेगें कि आदि काल से ही विश्वकर्मा शिल्पी अपने विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञान के कारण ही न मात्र मानवों अपितु देवगणों द्वारा भी पूजित और वंदित है। भगवान विश्वकर्मा के आविष्कार एवं निर्माण कोर्यों के सन्दर्भ में इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिवमण्डलपुरी आदि का निर्माण इनके द्वारा किया गया है। पुष्पक विमान का निर्माण तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोगी होनेवाले वस्तुएं भी इनके द्वारा ही बनाया गया है। कर्ण का कुण्डल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशुल और यमराज का कालदण्ड इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है।

भगवान विश्वकर्मा ने ब्रम्हाजी की उत्पत्ति करके उन्हे प्राणीमात्र का सृजन करने का वरदान दिया और उनके द्वारा 84 लाख योनियों को उत्पन्न किया। श्री विष्णु भगवान की उत्पत्ति कर उन्हे जगत में उत्पन्न सभी प्राणियों की रक्षा और भगण-पोषण का कार्य सौप दिया। प्रजा का ठीक सुचारु रूप से पालन और हुकुमत करने के लिये एक अत्यंत शक्तिशाली तिव्रगामी सुदर्शन चक्र प्रदान किया। बाद में संसार के प्रलय के लिये एक अत्यंत दयालु बाबा भोलेनाथ श्री शंकर भगवान की उत्पत्ति की। उन्हे डमरु, कमण्डल, त्रिशुल आदि प्रदान कर उनके ललाट पर प्रलयकारी तिसरा नेत्र भी प्रदान कर उन्हे प्रलय की शक्ति देकर शक्तिशाली बनाया। यथानुसार इनके साथ इनकी देवियां खजाने की अधिपति माँ लक्ष्मी, राग-रागिनी वाली वीणावादिनी माँ सरस्वती और माँ गौरी को देकर देंवों को सुशोभित किया।

देवगुरु बृहस्पति की भगिनी भुवना के पुत्र भौवन विश्वकर्मा की वंश परम्परा अत्यंत वृध्द है। सृष्टि के वृध्दि करने हेतु भगवान पंचमुख विष्वकर्मा के सघोजात नामवाले पूर्व मुख से सामना दूसरे वामदेव नामक दक्षिण मुख से सनातन, अघोर नामक पश्चिम मुख से अहिंमून, चौथे तत्पुरुष नामवाले उत्तर मुख से प्रत्न और पाँचवे ईशान नामक मध्य भागवाले मुख से सुपर्णा की उत्पत्ति शास्त्रो में वर्णित है। इन्ही सानग, सनातन, अहमन, प्रत्न और सुपर्ण नामक पाँच गोत्र प्रवर्तक ऋषियों से प्रत्येक के पच्चीस-पच्चीस सन्ताने उत्पन्न हुई जिससे विशाल विश्वकर्मा समाज का विस्तार हुआ है।

शिल्पशास्त्रो के प्रणेता बने स्वंय भगवान विश्वकर्मा जो ऋषशि रूप में उपरोक्त सभी ज्ञानों का भण्डार है, शिल्पो कें आचार्य शिल्पी प्रजापति ने पदार्थ के आधार पर शिल्प विज्ञान को पाँच प्रमुख धाराओं में विभाजित करते हुए तथा मानव समाज को इनके ज्ञान से लाभान्वित करने के निर्मित पाणच प्रमुख शिल्पायार्च पुत्र को उत्पन्न किया जो अयस, काष्ट, ताम्र, शिला एंव हिरण्य शिल्प के अधिषश्ठाता मनु, मय, त्वष्ठा, शिल्पी एंव दैवज्ञा के रूप में जाने गये। ये सभी ऋषि वेंदो में पारंगत थे।





प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड

द फूल

द मैजिशियन

द हाई प्रिस्टेस

द एम्प्रेस

द एम्परर

द हेरोफंट

द लवर्स

द चैरीओट

द स्ट्रेंग्थ

द हरमिट

द व्हील ऑफ फॉर्चून

जस्टिस

द हैंग्ड मैन

द डेथ

टेम्परंस

द डेविल

द टावर

द स्टार

द मून

द सन

जजमेंट

द वर्ल्ड

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